माइग्रेन (Migraine) एक प्रकार का गंभीर सिरदर्द होता है, जिसे आयुर्वेद में विशेष रूप से पित्त और वात दोष के असंतुलन के कारण माना जाता है। यह सिरदर्द आमतौर पर एक तरफ होता है, लेकिन कभी-कभी यह दोनों तरफ भी हो सकता है। इसमें सिरदर्द के साथ उल्टी, मितली, चक्कर, और प्रकाश एवं आवाज़ के प्रति संवेदनशीलता भी हो सकती है। माइग्रेन को आयुर्वेद में “अर्धावभेदक” नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब होता है सिर के आधे हिस्से में दर्द।

माइग्रेन के लक्षण:

  1. तीव्र सिरदर्द: दर्द आमतौर पर सिर के एक हिस्से में महसूस होता है और कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक रह सकता है।
  2. मितली और उल्टी: सिरदर्द के साथ अक्सर मितली और उल्टी की शिकायत होती है।
  3. प्रकाश और आवाज़ से संवेदनशीलता: माइग्रेन के दौरान तेज़ रोशनी या शोर असहनीय होता है।
  4. दृष्टि में बदलाव: कभी-कभी दृष्टि धुंधली हो जाती है या आँखों के सामने चमकती हुई रोशनी दिखाई देती है।

माइग्रेन के कारण:

  • पित्त दोष: शरीर में पित्त दोष की अधिकता से अधिक गर्मी और तेज़ दर्द होता है, जो माइग्रेन का मुख्य कारण हो सकता है।
  • वात दोष: वात दोष का असंतुलन भी माइग्रेन का कारण बन सकता है, जिससे सिर में धड़कन जैसा दर्द और बेचैनी होती है।
  • अनियमित दिनचर्या: सोने, खाने-पीने की अनियमितता और तनाव भी माइग्रेन के कारकों में शामिल हैं।
  • भोजन और जीवनशैली: बहुत अधिक मसालेदार, तैलीय, और अम्लीय भोजन करना माइग्रेन को बढ़ा सकता है।

आयुर्वेदिक उपचार:

  1. जड़ी-बूटियाँ:
    • ब्राह्मी: यह मस्तिष्क को शांत करती है और तनाव को कम करके सिरदर्द में राहत देती है।
    • शंखपुष्पी: यह मानसिक तनाव को कम करती है और माइग्रेन के लक्षणों को कम करने में मदद करती है।
    • जटामांसी: यह वात और पित्त दोष को संतुलित करती है, जिससे माइग्रेन में राहत मिलती है।
    • त्रिफला: यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है और पाचन में सुधार करता है।

      नोट : इन जड़ी-बूटियों का सेवन खुद न करें सही मात्रा और सही अनुपात में इनका सेवन करने से आप को स्थिति में सुधार आएगा और आप की समस्या ठीक हो सकती है । अपने लिए उपयुक्त जड़ी-बूटियों की योजना बनाने के लिए अद्वित वेदा आयुर्वेद के विशेषज्ञ आयुर्वेद चिकित्सक से मिलें, या हमारे आयुर्वेदिक विशेषज्ञ ऑनलाइन कंसल्ट कर सकते है इस नंबर पर 6239010180। गलत खुराक या उपयोग से गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएँ हो सकती हैं।
  2. खान-पान और जीवनशैली:
    • पित्त को बढ़ाने वाले मसालेदार, तली-भुनी, और खट्टी चीज़ों से बचें।
    • ठंडे, मीठे और हल्के भोजन का सेवन करें।
    • खूब पानी पियें और हर्बल चाय जैसे पुदीना या सौंफ का उपयोग करें।
    • योग और ध्यान का अभ्यास करें, जैसे कि शवासन, बालासन और विपरीत करणी।
    • प्राणायाम: नियमित श्वास-प्रश्वास अभ्यास तनाव और मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है।

योग और प्राणायाम:

  • नियमित रूप से योग और प्राणायाम (सांस संबंधी व्यायाम) करने से माइग्रेन में राहत मिल सकती है। जैसे:
    • शवासन (Corpse Pose)
    • बालासन (Child’s Pose)
    • विपरीत करणी (Legs-up-the-wall Pose)

निष्कर्ष:

आयुर्वेद में माइग्रेन का इलाज शरीर के दोषों को संतुलित करने, शरीर को विषमुक्त करने और तनाव को कम करने पर आधारित है। नियमित योग, सही खान-पान, और अद्वित वेदा के एक्सपर्ट द्वारा बताये नियमों और आयुर्वेदिक ओषधियो के सेवन से माइग्रेन को नियंत्रित किया जा सकता है।

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